GHANTAKARAN - Some unknown facts

By Shreya Chabri: 24:07:2023
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घंटाकरण देवता
देव भूमि के कण कण में देवों का वास है यहां कदम कदम पर आपको कुछ ऐसे मंदिर और धरोहरें नज़र आएंगी जिनका इतिहास बेहद ही रोचक है। इनमें से एक है घंटाकरण यानि घड़ियाल देवता। घंटाकरण देवता को ही घड़ियाल देवता के नाम से जाना जाता है। बद्रीनाथ के निकट माणा में इनका मुख्य सिद्धपीठ है। बद्रीनाथ से पहले देवदर्षनीय स्थान भी घंटाकरण देवता की स्थान माना जाता है। घड़ियाल देवता को बद्रीनाथ का रक्षक भी कहा जाता है। जिस तरह से भैरवनाथ जी को केदारनाथ जी का रक्षक कहा जाता है उसी तरह घड़ियाल देवता यानि की घंटाकरण जी को बद्रीनाथ जी की रक्षा करते हैं।
घंटाकरण बचपन से एक राक्षस था और साथ ही भगवान शिव का अनन्य भक्त भी। इतना अनन्य की उसे किसी और के मुख से शिव का नाम सुनना भी पसंद नहीं था। इसी कारण उसने अपने कानों में बड़े बड़े घंटे धारण किए हुए थे। जिस कारण उनका नाम घंटाकरण पड़ गया।

घंटाकरण की भक्ति से भगवान अत्यंत प्रसन्न हुए तथा उन्हें स्वयं दर्शन दिए तथा उन्हें वर मांगने को कहा। घंटाकरण अपने राक्षसी जीवन से खुश नहीं था वरदान स्वरूप घंटाकरण ने अपनी मुक्ति की इच्छा रखी। वरदान सुन कर भगवान शिव ने कहा कि तुम्हें अगर कोई मुक्ति दे सकता है तो वो हैं भगवान विष्णु। तुम्हें उनकी शरण में जाना होगा। यह सुन कर घंटाकरण उदास हो गया क्यांेकि वो भगवान शिव के अलावा और किसी की उपासना नहीं कर सकता था। उसकी परिस्थिति समझ कर भगवान शिव ने एक उपाय सुझाया और द्वारिका जाने को कहा। जहां भगवान विष्णु कृष्ण के रूप में अवतरित होकर रह रहे थे। 
शिवजी की आदेश के मुताबिक जब घंटाकरण द्वारिका पहुंचा तो वहां उन्हें पता चला कि श्री कृष्ण कैलाष गए हुए हैं। जहां वे पुत्र प्राप्ति हेतु भगवान षिव की तपस्या कर रहें हैं। यह सुन कर घंटाकरण भी कैलाश की ओर चल पड़ा। घंटाकरण जब बद्रिका आश्रम पहंचा तो उसने श्री कृष्ण को समाधि में लीन देखा। वो वहीं बैठ कर ज़ोर ज़ोर से नारायण नारायण का जाप करने लगा। जिस कारण श्री कृष्ण का ध्यान टूटा। उन्होने घंटाकरण से वहां आने का कारण पूछा। घंटाकरण ने उन्हें सारा वृतान्त कह सुनाया और उनसे मुक्ति की प्रार्थना की। कृष्ण उनकी भक्ति से अति प्रसन्न हुए। उसके बाद श्री कृष्ण ने नारायण के रूप में अवतरित होकर घंटाकरण को राक्षस योनि से मुक्त किया और साथ ही घंटाकरण को बद्रीनाथ का द्वारपाल नियुक्त किया। तभी से घंटाकरण को  à¤¬à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ का क्षेत्रपाल भी माना जाता है। इसीलिए बद्रीनाथ के पट खुलने से पूर्व घंटाकरण की पूजा करने की परंपरा है। साथ ही उत्तराखंड के गांव गांव में घड़ियाल देवता स्थानीय देवता के रूप में भी विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि घंटाकरण यहां के लोगों की रक्षा करते हैं उन्हें बीमारियों से बचाते है। सम्पूर्ण गढ़वाल में सामान्यतः यह विश्वास किया जाता है कि घड़ियाल देवता एक महान शक्तिशाली एवं एश्वर्यप्रदान होने के साथ ही भावुक एवं सुकुमार देवता भी है। गद्ववाल क्षेत्र के बहुत से क्षेत्रों में गढ़वाल देवता की एक माह की जात भी विभिन्न गांवों में जाती है ऐसे क्षेत्रों की रक्षा का भार इनके उपर समझा जाता है और इसीलिए जहां जहां भी घंटाकरण देवता की जाप जाती है वहां के ग्रामीण इनकी जात में सम्मिलित होते हैं और पूजा भंेट भी देते हैं। जात में घड़ियाल देवता के प्रतीक स्वरूप ध्वज गांव गांव में जाया जाता है गीत गाए à¤œà¤¾à¤¤à¥‡ हैं और घड़ियाल देवता अपने पषुवा पर खड़े होकर नाचते है।

घंटाकरण का माणा गांव में बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है। प्रसिद्ध घड़ियाल देवता मंदिर में जो भी श्रद्धालू सच्चे मन से मन्नत मांगता है वह मन्नत अवश्य पूरी होती है। मंदिर का दर्शन करने के लिए लोग दूर दूर से यहां आते हैं।

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Shreya Chabri

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